भारत में प्रवासी मज़दूरों की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उनसे ट्रेन या बस का किराया नहीं लिया जाए और बसों से अपने घर लौटने वाले मज़दूरों को भी खाना-पीना मुहैया कराया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवासी मज़दूरों के हालात पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने पूछा था कि इन सरकारों ने प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को ठीक करने के लिए क्या किया है?गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और एम.आर. शाह की बेंच ने इस मामले मेंसुनवाई की। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार समेत कई राज्य सरकारों ने अदालत में अपना पक्ष रखा. क़रीब घंटे भर की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूरों की सहायता करने के लिए कई निर्देश जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी सरकारों के लिए जारी निर्देश
- किसी भी प्रवासी मज़दूर से ट्रेन या बस का किराया ना लिया जाये. रेलवे का किराया दो राज्य सरकारों के बीच शेयर किया जाए, प्रवासी मज़दूरों से नहीं।
1- जब भी राज्य सरकारें ट्रेनों की माँग करें, तो रेलवे उन्हें ट्रेनें उपलब्ध कराए।
2- ट्रेन यात्रा के दौरान, स्टेशन से ट्रेन के चलने पर राज्य सरकारें यात्रियों के खाने और पीने की व्यवस्था करें. रेलवे मज़दूरों को यात्रा के दौरान खाना-पानी मुहैया कराए.
3- बसों में भी मज़दूरों को खाना और पानी दिया जाए.
4- राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करें कि पंजीकरण के बाद प्रवासी मज़दूरों को जल्द से जल्द बसें मुहैया करवाई जाएं,
5- जो प्रवासी मज़दूर सड़कों पर पैदल सफ़र करते दिखें, स्थानीय प्रशासन उनके खाने-पीने की व्यवस्था करे और उन्हें शेल्टर होम में ले जाए,
6- सुप्रीम कोर्ट मानता है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने कई प्रयास किये हैं, लेकिन लोगों तक इनका फ़ायदा पहुँचता दिख नहीं रहा क्योंकि कई जगह चूक हुई है।
7- प्रवासी मज़दूरों के पंजीकरण की प्रक्रिया में कई ख़ामियाँ दिखती हैं. उनके परिवहन और खाने-पीने की व्यवस्था में भी दिक्कते हैं. ऐसा भी हुआ है कि मज़दूरों ने पंजीकरण करवा लिया, फिर भी उन्हें अपने घर लौटने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा,
8- यूपी, महाराष्ट्र सरकार की दलीलों को हमने सुना. पर कई राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं दे पाईं. उन्हें इसके लिए कुछ वक़्त दिया जाता है. केंद्र और राज्य सरकारें क्या-क्या प्रयास कर रही हैं, वो उन्हें दर्ज करें।
9- सरकारें सुप्रीम कोर्ट को बताएं कि उनका ट्रांसपोर्ट प्लान क्या है, रजिस्ट्रेशन कैसे किया जा रहा है और कितने प्रवासी मज़दूर अभी घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं, उनकी संख्या कितनी है।
10- यह जानकारी देने के लिए सभी राज्य सरकारों को 5 जून तक का समय दिया जाता है।
प्रवासी मज़दूरों पर सुनवाई के दौरान
बहुत से प्रवासी मज़दूरों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में खड़े वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्ज़ाल्विस ने अदालत से गुज़ारिश की थी कि "इस मामले में दख़ल दिए जाने की ज़रूरत है. साथ ही केंद्र सरकार को कुछ दिशा-निर्देश भी दिए जाने चाहिए."कर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने गुज़ारिश की थी कि "प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को देखते हुए सर्वोच्च अदालत आज ही सभी पक्षों की सुनवाई कर ले और जल्द से जल्द इस मामले में आदेश दे। सनवाई के दौरान इंदिरा जयसिंह ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों की जितनी संख्या है, उसे देखते हुए श्रमिक ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए,सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि "बीते कुछ दिनों में कुछ ही अप्रिय घटनाएं हुई हैं, लेकिन इन्हें बार-बार दिखाया गया है,कोर्ट में मेहता ने कहा, पहले लॉकडाउन की घोषणा 24 मार्च को हुई थी जिसके दो मक़सद थे। एक तो ये कि कोरोना वायरस की चेन को तोड़ा जाए और दूसरा ये कि हेल्थकेयर सिस्टम को इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार किया जा सके। अब केंद्र सरकार ने तय किया है कि प्रवासी मज़दूरों को शिफ़्ट किया जाये और जब तक हर प्रवासी मज़दूर अपने घर नहीं पहुँच जाता, तब तक सरकार जो प्रयास कर रही है, वो जारी रहेंगे।
अब तक 91 लाख मज़दूरों को घर पहुँचाया'
उन्होने बताया कि 27 मई तक प्रवासी मज़दूरों के लिए 3700 स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं. औसतन क़रीब 1 लाख 85 हज़ार मज़दूर रोज़ाना इन ट्रेनों से सफ़र कर रहे हैं। सरकार की ओर से तुषार मेहता ने दावा किया कि अब तक ट्रेन और सड़क मार्ग से क़रीब 91 लाख मज़दूरों को उनके गृह राज्य तक पहुँचाया गया है जिनमें से 80 प्रतिशत प्रवासी मज़दूर उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जानना चाहा कि प्रवासी मज़दूरों के आने-जाने का ख़र्च कौन उठा रहा है?तो तुषार मेहता ने जवाब दिया, दो राज्य आपसी समन्वय से मज़दूरों के आने-जाने की व्यवस्था देख रहे हैं. रेलवे स्टेशन तक पहुँचाना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है। स्टेशन पहुँचने पर मज़दूरों की स्क्रीनिंग होती है और जो फ़िट होते हैं उन्हें पहले से सेनेटाइज़ की गई ट्रेनों में बैठाया जाता है और ट्रेन में सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन होता है। तुषार मेहता ने कोर्ट में दावा किया कि । प्रवासी मज़दूरों को ट्रेन में पहली मील (खाना) राज्य सरकार द्वारा दी जा रही है और जब ट्रेन चल पड़ती है तो रेल मंत्रालय द्वारा उन्हें खाना दिया जाता है। छोटी यात्रा में एक बार और लंबी दूरी की यात्रा में दो बार खाना दिया जाता है। गंतव्य पर पहुँचने के बाद राज्य सरकार लोगों को बसें मुहैया कराती हैं और जिनसे ये लोग अपने गाँवों तक जा रहे हैं। तुषार मेहता ने दावा किया कि रेल के टिकट का ख़र्च या तो केंद्र सरकार उठाती है या राज्य सरकार, लेकिन प्रवासी मज़दूरों से कुछ नहीं लिया जा रहा।
टिकटों का पैसा कौन दे रहा?'
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा कि आपने अभी भी साफ़तौर से नहीं बताया कि टिकटों का पैसा कौन दे रहा है?इसके जवाब में मेहता ने कहा, या तो वो राज्य टिकट का पैसा दे रहा है जहाँ से प्रवासी मज़दूर जा रहे हैं या फिर वो जहाँ उन्हें पहुँचना है। तब कोर्ट ने पूछा, "उन राज्यों का क्या जो प्रवासी मज़दूरों को टिकट के पैसे बाद में लौटाने की बात कर रहे हैं? क्योंकि मज़दूरों को इसकी समझ नहीं है कि किस सरकार से उन्हें पैसे लेने हैं,सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इसका जवाब चाहते हैं। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अदालत में खड़े वरिष्ठ वकील पीएस नरसिम्हा ने कहा कि क़रीब 18 लाख लोग शिफ़्ट हो चुके हैं, प्रवासी मज़दूरों के लिए 1335 ट्रेनें चल रही हैं, हर स्तर पर व्यवस्था बनाने की कोशिश की गई है, कैंप विकसित किए गए हैं जिनमें लोगों को खाना दिया जा रहा है। प्रवासी मज़दूरों को कैंपों में मिल रहे खाने पर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, क्या खाना दिया जा रहा है? कच्चा राशन दिया जा रहा है। दालें क्या खाना होती हैं. सरकार ये भी तो बताएं कि ये लोग जो सड़कों पर हैं, बुरी स्थिति में हैं, वो उन्हें पकाएंगे कहाँ?
राज्यों की सीमाओं पर क्यों रोका गया?'
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि प्रवासी मज़दूर जब तक घर नहीं पहुँच जाते, तब तक उनके खाने और अन्य ज़रूरी सामान की व्यवस्था का सरकारें ध्यान रखें। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि सभी प्रवासी मज़दूरों को शिफ़्ट होने में अभी कितना समय लगेगा? इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा, "क़रीब एक करोड़ लोग शिफ़्ट हो चुके हैं। बहुत से लोगों ने काम-धंधे खुलने के उम्मीद में शिफ़्ट ना होने का निर्णय लिया है। तुषार मेहता ने कोर्ट में दावा किया था कि मज़दूर जहाँ हैं और जहाँ जाना चाहते हैं, उन दोनों राज्यों की सहमति से उन्हें शिफ़्ट किया जा रहा है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि उन घटनाओं का क्या जब देखा गया कि एक राज्य से प्रवासी मज़दूर दूसरे राज्य के बॉर्डर पर पहुँचे और उस राज्य ने उन्हें लेने से ही मना कर दिया? इसके बारे में भी कोई नीति होनी चाहिए। इस पर तुषार मेहता ने जवाब दिया कि "इसमें कोई विवाद नहीं है, कोई राज्य किसी भी अपने प्रवासी मज़दूर को दाख़िल होने से नहीं रोक रहा, आख़िरकार वो भारतीय हैं और इस देश के नागरिक हैं। सूत्र
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