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सन 2020 से भी खतरनाक सन तुलना

 2020 की तुलना करें तो आपको एहसास होगा कि इस साल को कम से कम सबसे बुरा तो नहीं ही कहा जा सकता हैजानते है कुछ विस्तार से-महामारी से बुरी तरह से प्रभावित इस साल को कुछ "अब तक का सबसे खराब साल" मान रहे हैं लेकिन इतिहास पर अगर नज़र दौड़ाएं और इतिहास के कुछ सबसे बुरे दौर से, जिनके बारे में आपको पता नहीं,


1-साल 2020 में जो बातें सकारात्मक रहीं,

2-साल 2020 मे कई ने अपनी नौकरी गंवाई,

3-साल 2020 में हम अपने प्रियजनों से नहीं मिल सके,

4-साल 2020 में हम छुट्टी मनाने नहीं जा सके, 

5-साल 2020 में बेरूत के बंदरगाह पर जबरदस्त धमाका हुआ,

6-साल 2020 में जंगल में लगी आग की वजह से अरबों जानवर मारे गए,

7-साल 2020 में कोविड-19 से होने वाली मौतें,

1-साल 2020 में जो बातें सकारात्मक रहीं-
कई मायनों में साल 2020 एक बहुत मुश्किल साल रहा है लेकिन इसके बावजूद हम कुछ सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रीत कर सकते हैं. यह एक ऐसा साल रहा है जिस साल राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है,

2020 में उन देशों की संख्या 20 तक पहुँच गई जहाँ एक महिला देश का नेतृत्व कर रही है. 1995 में ऐसे देशों की संख्या 12 थी. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 2020 में दोगुने से अधिक हो गया है. यह कुल सीटो का 25 फ़ीसद तक पहुँच चुका है। कमला हैरिस के रूप में पहली बार कोई महिला अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनीं. वो इस पद तक पहुँचने वाली पहली अश्वेत दक्षिण एशियाई भी हैं। पूरी दुनिया में लोगों ने नस्लीय असमानता के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया. इससे भविष्य के लिए उम्मीद बंधी। पर्यावरण के लिए भी अच्छी ख़बर आई. कई कंपनियों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा किया। नासा ने अक्टूबर में घोषणा की कि चांद पर पहले जितनी उम्मीद की गई थी उससे कहीं ज़्यादा पानी मौजूद है. इससे भविष्य के मिशन में मदद मिल सकती है। लेकिन इस साल हमने इस महामारी से भी कई सबक सीखे. इसमें एक सबक तो निश्चित तौर पर सबने सीखा और वो ये है कि लोग खूब हाथ धो रहे हैं।  

2-साल 2020 मे कई ने अपनी नौकरी गंवाई-

महामारी की वजह से बदहाल हुई अर्थव्यवस्था ने कई लोगों की रोजी-रोटी दुनिया भर में छीन ली. हालांकि, बेरोजगारी का स्तर अब भी 1929 से 1933 तक चली मंदी के बराबर नहीं पहुँचा है. बेरोजगारी के लिहाज से 1933 सबसे खराब साल रहा था। जर्मनी में हर तीन में से एक आदमी उस वक़्त बेरोजगार था. उस वक़्त इन्हीं परिस्थितियों में लोकलुभावन वादें करने वाले एक नेता एडोल्फ हिटलर का वहाँ उदय हुआ। 

3-साल 2020 में हम अपने प्रियजनों से नहीं मिल सके-

यह सच है कि इस साल हमने ज्यादातर वक्त घर में बिताया है. अपने प्रियजनों से मिल नहीं पाए हैं. लेकिन 536 ईस्वी में दुनिया के ज्यादातर लोग खुला आसमान भी नहीं देख पाए थे। हार्वर्ड के मध्यकालीन इतिहासकार और पुरातत्वविद् माइकल मैककॉर्मिक बताते हैं कि यूरोप, मध्य-पूर्व और एशिया के कई हिस्सों में रहस्यमयी धुंध करीब 18 महीनों तक छाया हुआ रहा था।


उनका मानना है कि यह 'सबसे बुरा दौर था' भले ही 'सबसे बुरा साल' ना भी हो तो। यह पिछले 2300 सालों में सबसे ठंडे दशक की शुरुआत थी, फसल बर्बाद हो चुके थे, लोग भूख से मर रहे थे।संभवत: यह आइसलैंड या फिर उत्तरी अमेरिका में हुए ज्वालामुखी के विस्फोट की वजह से हुआ हो. पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में इसका असर रहा था। ऐसा माना गया कि ज्वालामुखी से निकला धुंआ ठंडी हवा के सहारे यूरोप और फिर बाद में एशिया में फैल गया।साल 2020 में लोग टॉयलेट पेपर जमा करने पर मजबूर हुए।कम से कम हमारे पास अभी टॉयलेट पेपर तो था. आप उस वक्त की कल्पना कीजिए जब रोम में शौच क्रिया के बाद सफाई के लिए स्पंज लगे हुए डंडे का प्रयोग किया जाता था।

4-साल 2020 में हम छुट्टी मनाने नहीं जा सके-


यह साल निश्चित तौर पर दुनिया भर में पर्यटन के लिहाज से बहुत बुरा रहा है, लेकिन अगर आप इसे लेकर मायुस है तो फिर अपने पूर्वजों के बारे में सोचिए। 1,95,000 साल पहले से इंसान यात्राओं को लेकर पाबंदियों को झेलता रहा है. इसकी शुरुआत ठंडे और उस सुखाड़ वाले वक्त से होता है जो दसियों हज़ार साल तक रहा था. इस अवधि को मैरीन आइसोटोप स्टेज 6 नाम से जाना जाता है।  इंस्टीट्यूट ऑफ ह्युमन ओरिजीन के पुरातत्वविद् प्रोफेसर कर्टिस मैरीन जैसे कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दौर में पड़ने वाला सुखा हमारी प्रजाति को करीब-करीब खत्म ही कर चुकी थी। उनका कहना हैं कि अफ्रीका के दक्षिणी तट पर मानव प्रजाति की तब जान बच पाई थी. इस क्षेत्र को गार्डेन ऑफ इडेन कहते हैं. यहाँ इंसानी प्रजाति ने समुद्री भोजन के सहारे जीना सीखा। 

साल 2020 में पुलिस की क्रूरता सुर्ख़ियों में रही

अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के साथ ही पुलिस की क्रूरता को लेकर काफी चर्चा हुई, लेकिन दुर्भाग्य से यह कोई नई बात नहीं है।  साल 1992 के अप्रैल में लॉस एंजिल्स में चार गोरे पुलिसवालों को एक काले मोटर चालक रोडनी किंग की हत्या के जुर्म में बरी करने के बाद दंगा भड़क गया था। 

5-साल 2020 में बेरूत के बंदरगाह पर जबरदस्त धमाका हुआ-

बेरूत के बंदरगाह पर चार अगस्त को दुर्घटनावश करीब 2,750 टन अमोनिया नाइट्रेट अपर्याप्त तरीके से रखने की वजह से एक जबरदस्त धमाका हुआ. इसमें करीब 190 लोगों मारे गए और 6,000 से ज्यादा लोग घायल हुए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह इतिहास में होने वाला एक सबसे बड़ा गैर-परमाणु धमाका था. यह टीएनटी के एक किलोटन के बराबर था. हिरोशिमा पर गिराए गए बम के बीसवें हिस्से के बराबर। लेकिन दिसंबर, 1984 में भारत के भोपाल शहर में केमिकल प्लांट में जो गैस लीक होने की दुर्घटना हुई थी वो आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। भारत सरकार का कहना है कि 3,500 लोग इस दुर्घटना में कुछ दिनों के अंदर मारे गए थे और उसके बाद के सालों में फेफड़े की बीमारी से 15,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। दशकों तक इसका असर लोगों के ऊपर रहा।  

6-साल 2020 में जंगल में लगी आग की वजह से अरबों जानवर मारे गए-

करीब तीन बिलियन जानवर इस साल ऑस्ट्रेलिया के जंगल में लगी आग की वजह से मारे गए, (इसकी शुरुआत 2019 के आख़िर में हुई थी)। कम से कम 33 लोग भी इस आग में मारे गए. इस आग ने ऑस्ट्रेलिया के अनोखे वन्य-जीवन को तहस-नहस कर के रख दिया. आग और इससे बर्बाद हुए जानवरों के आशियाने की वजह से स्तनपायी जानवरों, सरीसृप, चिड़िया और मेढ़क जैसे जीवों का बड़ा नुकसान हुआ है। लेकिन सितंबर 1923 में आए भूकंप से जो आग लगी उससे जापान के टोक्यो से लेकर योकोहामा तक 1,40,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। 


7-साल 2020 में कोविड-19 से होने वाली मौतें-

JHU के आंकड़े के मुताबिक 17 दिसंबर तक कोविड-19 की वजह से दुनिया भर में 7.45 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और पूरी दुनिया में इससे 16 लाख लोगों की जान जा चुकी है। लेकिन यह दुनिया की सबसे बुरी महामारी नहीं है. इससे कहीं ज्यादा बुरी महामारी दुनिया झेल चुकी है। उन्हीं महामारियों में से एक ब्लैक डेथ है. यूरोप में इस बीमारी की वजह 1346 के बाद से ढाई करोड़ और पूरी दुनिया भर में 20 करोड़ लोग मारे गए थे। स्पेनिश और पुर्तगाली यात्रियों की वजह से 1520 में अमेरिका में चेचक की बीमारी फैली थी जिसकी वजह से महादेश के मूल निवासियों की 60 से 90 फ़ीसद आबादी मौत के मुंह में समा गई थी। दूसरे विश्व युद्ध से लौट रहे सेना के जवानों से 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू ने करीब पांच करोड़ों लोगों की जान ले ली थी। यह उस वक्त दुनिया की कुल आबादी का तीन से पांच फ़ीसद था। 1980 के दशक से शुरू होने के बाद से एड्स ने अब तक 3.2 करोड़ लोगों की जान ले ली है। 






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