25 मई 1981 को बांग्लादेश के राष्ट्रपति जनरल ज़ियाउर रहमान ने अपने सैनिक सचिव से कहा कि वो 29 मई को चटगाँव की यात्रा पर जाएंगे।
इस फ़ैसले से सुरक्षा एजेंसियों की चिंता थोड़ी बढ़ गई क्योंकि जिस दिन ज़िया ने चटगाँव जाने का फ़ैसला किया, उसी दिन उन्होंने चटगाँव के जीओसी मेजर जनरल मोहम्मद अबुल मंज़ूर के ढाका तबादले के आदेश पर भी दस्तख़त किए। जनरल मंज़ूर को ये तबादला पसंद नहीं आया. हालाँकि उन्हें इस पद पर रहते साढ़े तीन साल हो चुके थे. उनके ज़ख़्मों पर नमक छिड़कते हुए जनरल ज़िया ने उन्हें ये भी कहलवा भेजा था कि 29 मई को जब वो पटेंगा हवाई अड्डे पर पहुंचे तो उन्हें वहाँ मौजूद रहने की ज़रूरत नहीं है। इसके लिए बहाना ये बनाया गया था कि राष्ट्रपति एक राजनीतिक यात्रा पर जा रहे हैं इसलिए जीओसी का हवाईअड्डे पर रहना ज़रूरी नहीं है। मंज़ूर ने जनरल ज़िया के इस निर्देश को अपनी निजी बेइज़्ज़ती के तौर पर लिया. इसके पीछे कुछ कारण भी थे। एक तो बांग्लादेश के नौसेनाध्यक्ष रियर एडमिरल एमए ख़ाँ जनरल ज़िया के विमान में ही आ रहे थे. दूसरे एयर वाइस मार्शल सदरुद्दीन मोहम्मद होसैन पाटेंगा हवाईअड्डे पर जनरल ज़िया का स्वागत करने वाले थे।
जनरल मंज़ूर और उनके मातहत अफ़सरों ने कई बार जनरल ज़िया के सैनिक सचिव को ढाका फ़ोन कर पूछा भी कि उन्हें हवाई अड्डे की स्वागत समिति से क्यों अलग रखा जा रहा है जबकि वो उस इलाक़े के सेना के सबसे बड़े अफ़सर हैं।
ख़ुफ़िया विभाग की अनदेखी
फ़ोरसेज़ इंटेलिजेंस के महानिदेशक मेजर जनरल महब्बत जान चौधरी ने बार-बार जनरल ज़िया को सलाह दी थी कि आप 1 जून तक अपनी चटगाँव यात्रा स्थगित कर दें।इसी दिन जनरल मंज़ूर को अपनी नई पोस्टिंग पर ढाका रिपोर्ट करने के आदेश दिए गए थे. यही नहीं जब ज़िया चटगाँव के लिए रवाना हो रहे थे तो चौधरी ने उनसे अनुरोध किया था कि वो चटगाँव में रात न बिताएं और उसी शाम ढाका वापस लौट आएं। लेकिन ज़िया ने उनकी ये बात भी नहीं मानी। जब मंज़ूर के ख़ासमख़ास लेफ़्टिनेंट कर्नल मोतीउर रहमान 25 मई को एक इंटरव्यू के सिलसिले में ढाका गए तो उनके पुराने दोस्त लेफ़्टिनेंट कर्नल महफ़ूज़ुर रहमान ने (जो उस समय जनरल ज़िया के पर्सनल स्टाफ़ ऑफ़िसर थे) उन्हें मेजर जनरल मंज़ूर के तबादले के बारे में बताया। मोती इस ख़बर से बहुत नाराज़ हुए और जब उन्हें बताया गया कि ज़िया 29 मई को चटगाँव जा रहे हैं, तभी जनरल ज़िया की हत्या का प्रयास करने की योजना बननी शुरू हुई।
29 मई को जनरल ज़िया का व्यस्त कार्यक्रम
इस धरती पर जनरल ज़िया के आख़िरी दिन की शुरुआत साधारण रही. सुबह 9 बजे उन्होंने बांग्लादेश बिमान की विशेष उड़ान से चटगाँव के लिए उड़ान भरी।
चटगाँव के सर्किट हाउस पहुँचने पर उन्हें हल्का नाश्ता दिया गया. इससे पहले कि वो चाय पीते और बिस्किट खाते उनके निजी चिकित्सक लेफ़्टिनेंट कर्नल महताबुल इस्लाम ने उन्हें चखा. राष्ट्रपति के डॉक्टर उनके फ़ूड टेस्टर की भूमिका भी निभा रहे थे। जनरल ज़िया के उस दिन का वर्णन करते हुए मशहूर पत्रकार एन्टनी मेसक्रेनहस अपनी किताब 'बांगलादेश अ लेगेसी ऑफ़ ब्लड' में लिखते हैं, "हल्के नाश्ते के बाद सर्किट हाउस की पहली मंज़िल के बरामदे में ज़िया ने अपने पार्टी के लोगों के साथ दो घंटे तक बैठक की. इसके बाद साढ़े बारह बजे जुमे की नमाज़ के लिए बैठक को विराम दिया गया. सफ़ेद कुर्ता-पायजामा पहने हुए जनरल ज़िया जब चाक बाज़ार की चंदनपुरा मस्जिद गए तो वहाँ मौजूद लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
नमाज़ के बाद वो अपने पार्टी सहयोगियों के साथ दिन का खाना खाने सर्किट हाउस लौटे. ज़िया को तेल और मसाले वाली करी बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उनके लिए हल्का खाना बनवाया गया और सर्किट हाउस के बरामदे में ही परोसा गया. इसके बाद उन्होंने डेढ़ घंटे तक आराम किया. शाम 5 बजे उन्हें चाय के लिए जगाया गया. इसके बाद उन्होंने ग्राउंड फ़्लोर पर काँन्फ़्रेंस रूम में शहर के सभ्रांत लोगों की एक सभा को संबोधित किया। रात 9 से 11 बजे के बीच उन्होंने अपनी पार्टी के नौ सदस्यों से बात की. इस बीच कुछ मिनटों के लिए चटगाँव के कमिश्नर सैफ़ुद्दीन अहमद और पुलिस कमिश्नर एबीएम बोएदुज्ज़माँ भी उनसे मिलने आए. 11 बजे के आसपास उन्होंने रात का खाना खाया. उनके खाने से पहले उनके डॉक्टर ने एक बार फिर उनके खाने का परीक्षण किया. आधी रात को उन्होंने ढाका फ़ोन कर अपनी पत्नी ख़ालिदा ज़िया से 15 मिनट तक बात की. ये उनकी आख़िरी बातचीत थी. जब करीब साढ़े बारह बजे ज़िया ने अपने कमरे की लाइट बुझाई तो चटगाँव के आसमान में एक ज़बरदस्त तूफ़ान ने दस्तक दी और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।
हत्यारों की बैठक
उन्होंने अपने स्टाफ़ को सुबह बेड टी के लिए 6 बजकर 45 मिनट पर जगाने के लिए कहा. तय हुआ कि अगर तूफ़ान तब तक ठहर जाएगा तो वो एक घंटे बाद ढाका के लिए रवाना हो जाएंगे। उसी समय शहर के बाहर केंटोन्मेंट में उनके हत्यारे उनको मारने की तैयारी कर रहे थे. हर शख़्स को अलग-अलग भूमिकाएं दी गई थीं। 112 सिग्नल के मेजर मारूफ़ रशीद की ज़िम्मेदारी थी कि वो सुबह तड़के ही ढाका से सभी संचार लिंक तोड़ लें। जनरल ज़ियाउर रहमान की हत्या के बाद जारी किए गए श्वेत पत्र में कहा गया है कि 'कर्नल मोती ने उस रात राष्ट्रपति के प्रिंसिपल स्टाफ़ ऑफ़िसर और अपने पुराने दोस्त लेफ़्टिनेंट कर्नल महफ़ूज़ुर रहमान से टेलिफ़ोन पर बात कर उन्हें बता दिया कि उस रात जनरल ज़िया को रास्ते से हटाने की कोशिश की जाएगी और कर्नल महफ़ूज़ुर ने ज़िया के कमरे के बाहर तैनात दो सशस्त्र पुलिस गार्ड्स को ड्यूटी से हटा लिया था।
क़ुरान पर हलफ़
रात साढ़े 11 बजे कर्नल मोती ने 11 और 28 ईस्ट बंगाल के सभी अफ़सरों की 28 ईस्ट बंगाल के दफ़्तर में बैठक बुलाई।
इस बैठक में मेजर मोमिन, मेजर ग़ियासुद्दीन अहमद, कैप्टन मुनीर, कैप्टेन जमील हक़, कैप्टन मोइनुल इस्लाम और कैप्टन ग़यासुद्दीनअहमद समेत कुल छह अफ़सर शामिल हुए। कर्नल मोती ने अंदर से कमरा बंद किया और क़ुरान शरीफ़ ले आए। कमरे में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "साथियों, हम जो कुछ भी कर रहे रहे हैं अपने देश और उसके लोगों के हित और न्याय के लिए कर रहे हैं. अगर आप हमारे साथ हैं तो क़ुरान पाक पर हाथ रख कर कहें कि जो ज़रूरी है वो करेंगे. अगर आप में से कोई ऐसा नहीं करना चाहता तो वो इस कमरे से बाहर जा सकता है. लेकिन मेरा एक ही अनुरोध है कि वो इसके बारे में किसी को कुछ बताएं नहीं। किसी ने भी असहमति नहीं व्यक्त की। सबने बारी बारी से क़ुरान छूकर हलफ़ उठाया. इसके बाद सबने सैनिक वर्दी पहनी और एक-एक सब मशीन गन उठा ली।
तीन दलों का गठन
जब इन अफ़सरों का दल कलूरघाट पहुँचा तो मूसलाधार बारिश हो रही थी। वहाँ सबसे पहले पहुँचने वाले थे लेफ़्टिनेट कर्नल महबूब जो अपने तीन साथियों के साथ अपनी सफ़ेद टोयोटा कार में वहाँ पहुँचे थे।
एक घंटे के अंदर 18 अफ़सर और 2 जेसीओ भी वहाँ पहुंच गए. लेफ़्टिनेंट कर्नल मोती इन सबका नेतृत्व कर रहे थे. इन सबके पास 11 सब मशीन गन, 3 हैंड रॉकेट लॉन्चर्स और 3 ग्रेनेड फायरिंग राइफ़ल्स थीं. ये सब पूरी तरह से लोडेड थीं और एक्शन के लिए तैयार थीं। इस हमले के लिए तीन दल बनाए गए। पहले दो दलों की ज़िम्मेदारी थी सर्किट हाउस के अंदर जाना. तीसरे दल को सर्किट हाउस के पीछे अल्मास सिनेमा के पास तैनात किया गया. उनकी ब्रीफ़ ये थी कि कोई भी सर्किट हाउस से बाहर भागने की कोशिश करे तो उसे तुरंत गोली से उड़ा दिया जाए। ज़िया पर हमला करने के लिए मोती ने छह लोगों को चुना, महबूब, लेफ़्टिनेंट कर्नल फ़ज़्ले होसैन, ख़ालिद और कैप्टेन जमील हक़, कैप्टेन मोहम्मद अब्दुस सत्तार और लेफ़्टिनेंट रफ़ीक़ुल हसन ख़ाँ। कमरा नंबर 9 पर जहाँ जनरल ज़ियाउर रहमान के रहने का अनुमान था, हमला करने की ज़िम्मेदारी फ़ज़्ले होसैन और कैप्टेन सत्तार को दी गई।
दूसरे दल में मोती के साथ मेजर काज़ी मोमीनुल हक़, मोज़फ़्फ़र होसैन, कैप्टन इलियास और सलाहउद्दीन अहमद और लेफ़्टिनेंट मोसलेहुद्दीन थे। ये बैकअप टीम थी और इनका रोल बाहर से किसी हस्तक्षेप को रोकना था। ये तीनों दल सुबह साढ़े तीन बजे कलूरघाट से धीमी गति से ड्राइव करते हुए मूसलाधार बारिश के बीच सर्किट हाउस की तरफ़ रवाना हुए। बाद में प्रकाशित व्हाइट पेपर के अनुसार सबसे आगे चल रही जीप में सवार लेफ़्टिनेंट रफ़ीक़ुल हसन ख़ाँ ने लेफ़्टिनेंट कर्नल फ़ज़्ले से पूछा, क्या आप राष्ट्रपति को मारने जा रहे हैं ?लेफ़्टिनेंट कर्नल फ़ज़्ले बोले नहीं, हम उन्हें सिर्फ़ पकड़ेंगे।
दोनों हमलावर टीमें बिना किसी विरोध के सर्किट हाउस में दाख़िल हुईं. उस भवन के मुख्य गेट को जान-बूझकर खुला रख छोड़ा गया था। वहाँ पर तैनात चार संतरियों ने हमलावरों को बिना किसी बाधा के अंदर आने दिया. जब वो सर्किट हाउस के सामने पहुंचे, लेफ़्टिनेंट कर्नल फ़ज़्ले होसैन ने एक के बाद एक दो हैंड रॉकेट लॉन्चर फ़ायर किए। इससे ज़िया के कमरे के नीचे वाले कमरे की दीवार में बड़ा छेद हो गया. इस फ़ायरिंग का उद्देश्य सर्किट हाउस में रह रहे लोगों को डराना और अपने दल के लोगों को सिग्नल देना था कि ऑपरेशन शुरू हो चुका है। इसके बाद ग्रेनेड, रॉकेट्स और मशीन गन से फ़ायरिंग शुरू कर दी गई. सबसे पहले मरने वाले थे पोर्टिको पर संतरी की ड्यूटी कर रहे पुलिस कॉन्सटेबिल दुलाल मियां। उनके सिर पर गोली लगी. इसके बाद वहाँ गार्ड ड्यूटी पर तैनात सशस्त्र पुलिस जवानों ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ लोग तो भाग गए और जिसे जगह मिली वो वहीं छिप गया। इस हत्याकांड की जाँच कर रहे आयोग ने पाया कि दुलाल मियां के अलावा सिर्फ़ तीन पुलिसकर्मी गोलियों से घायल हुए।
प्रेसिडेंट गार्ड के जवान नदारद
यहाँ तक कि सर्किट हाउस में तैनात प्रेसिडेंट गार्ड रेजिमेंट के सैनिक भी कुछ नहीं कर पाए. दो लोग जिन्हें राष्ट्रपति के शयनकक्ष के सामने खड़े होना चाहिए था, नीचे पाए गए। सिविल जाँच कमीशन की जाँच में पाया गया कि एक दूसरे दल को सुबह चार बजे इन लोगों की जगह लेनी थी, लेकिन ये लोग उनके आने से पहले ही नीचे चले गए थे। जब फ़ायरिंग शुरू हुई तो ज़िया की रक्षा में तैनात कुछ सैनिकों ने उनके कमरे की तरफ़ जाने की कोशिश की. लेकिन वो बहुत आगे नहीं जा सके। हमले के शुरुआती मिनटों में ही उनमें से चार लोग ग्राउंड फ़्लोर पर ही मार दिए गए और दो बुरी तरह से घायल हो गए. पहली मंज़िल पर जनरल ज़िया के बेडरूम की सुरक्षा के लिए एक भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था।
दो हमलावर अपने ही साथियों की गोलियों से घायल
इस पूरे ऑपरेशन में हमलावरों में से कोई भी सर्किट हाउस के सुरक्षा गार्ड की गोली से न तो मारा गया और न ही घायल हुआ. जो दो लोग घायल हुए वो अपने ही साथियों की गोली के शिकार हुए। बैकअप टीम द्वारा फ़ायर की गई गोलियों से लेफ़्टिनेंट कर्नल फ़ज़्ले होसैन बुरी तरह से घायल हो गए. इसी तरह कैप्टन जमील हक़ को भी अपने साथियों की ही गोली लगी। घायल होने के बावजूद जमील पहली मंज़िल के बरामदे तक पहुँचने में सफल हो गए जहाँ उन्होंने राष्ट्रपति के निजी अंगरक्षक नायक रफ़ीक़ुद्दीन को गोली मारकर घायल किया। राष्ट्रपति के मुख्य सुरक्षा अधिकारी लेफ़्टिनेंट कर्नल मोएनुल अहसन और प्रेसिडेंट गार्ड रेजिमेंट के कैप्टेन अशरफ़ुल ख़ाँ पहली मंज़िल के पीछे वाले कमरों में सो रहे थे और विस्फोट की आवाज़ सुनकर जागे। वो अपनी गन लेकर राष्ट्रपति की रक्षा के लिए दौड़े लेकिन इससे पहले कि वो अपनी गनों का इस्तेमाल कर पाते उन्हें हमलावरों ने कॉरीडोर में ही धराशाई कर दिया।
कमरा नंबर 4 में थे जनरल ज़िया
एंटनी मेसक्रेन्हस अपनी किताब 'बांग्लादेश अ लेगेसी ऑफ़ ब्लड' में लिखते हैं, "जब तक कर्नल मोती सहित बैकअप टीम भी राष्ट्रपति ज़िया की तलाश में पहली मंज़िल पर पहुँच चुकी थी. उनके पास ख़बर थी कि राष्ट्रपति कमरा नंबर 9 में ठहरे हुए हैं. जब कैप्टन अब्दुस सत्तार ने उस कमरे के दरवाज़े पर ठोकर मारी तो उन्होंने वहाँ बीएनपी की नेता डॉक्टर अमीना रहमान को पाया. इसके बाद हमलावर हर दरवाज़े को खोलकर देखने लगे। कैप्टन सलाहउद्दीन को ज़ोर-ज़ोर से पूछते सुना गया, 'राष्ट्रपति कहाँ हैं? राष्ट्रपति कहाँ हैं?उन्हें जल्दी ही पता चल गया कि ज़िया कमरा नंबर 4 में सो रहे हैं. ये कमरा सीढ़ियों के बिल्कुल पास था और इसके दो दरवाज़े थे. एक सीढ़ियों के सामने खुलता था और दूसरा बरामदे में खुलता था. ये दरवाज़ा बाहर से बंद था। बाद में लेफ़्टिनेंट रफ़ीक़ुल हसन ख़ाँ ने जाँच आयोग के सामने गवाही में कहा, "अचानक शोर हुआ राष्ट्रपति बाहर आ रहे हैं. कुछ देर बाद किसी ने चिल्लाकर कहा, 'ये हैं वो'. सफ़ेद पायजामा पहने ज़िया नींद से उठ कर आए थे, इसलिए उनके बाल अस्तव्यस्त थे. उन्होंने हाथ उठाकर बहुत निर्भीकता से कहा, 'तोमारा की चाव' (तुम क्या चाहते हो?
सब मशीन गन ज़िया पर ख़ाली की
बाद में लेफ़्टिनेंट मुस्लेहुद्दीन ने गवाही देते हुए कहा, "ज़िया के सबसे नज़दीक था मैं और मेजर मुज़फ़्फ़र जो काँप रहे थे. मैंने ज़िया को आश्वस्त करना चाहा, 'परेशान मत होइए. डरने की कोई बात नहीं है.सर.' हम दोनों को अब तक यही आभास था कि ज़िया को गिरफ़्तार किया जाना है, उन्हें मारना नहीं है. लेकिन कर्नल मोती के लिए जो पास खड़े थे, कोई दया नहीं थी। उन्होंने उन्हें कोई मौक़ा नहीं दिया. उन्होंने अपनी सब मशीन गन से फ़ायर किया जिसकी गोलियाँ ज़िया के शरीर के दाहिने हिस्से में लगीं. ज़िया मुंह के बल गिरे. उनके सारे शरीर से ख़ून निकल रहा था. मोती ने अपनी मशीनगन के बैरल से ज़िया के शरीर को पलटा और पूरी मैगज़ीन ज़िया के चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से पर ख़ाली कर दी। ज़िया के मरते ही सारे हत्यारे सर्किट हाउस से चले गए. वो अपने साथ अपने दो घायल साथियों को ले गए. इस पूरे प्रकरण में सिर्फ़ 20 मिनट लगे।
आँख, सीने और पेट में गोलियाँ
लेफ़्टिनेंट मुस्लेहुद्दीन ने अपनी गवाही में आगे बताया, "केंटोन्मेंट लौटते हुए मेजर मुज़फ़्फ़र ने जो अभी तक काँप रहे थे मुझसे कहा मुझे नहीं पता था कि हम राष्ट्रपति को मारने जा रहे हैं. मैं सोच रहा था कि हमें उन्हें गिरफ़्तार करना है। ज़िया के निजी चिकित्सक लेफ़्टिनेंट कर्नल महताबुल इस्लाम ने अपनी गवाही में कहा,फ़ायरिंग रुकने के बाद मैं अपने कमरे से बाहर निकला. मैंने देखा कि दरवाज़े के बाहर गोलियों से छलनी राष्ट्रपति का शव पड़ा हुआ है। उनकी एक आँख पूरी तरह से नष्ट हो गई थी और उनके गले में गहरा घाव था. उनके सीने, पेट और पैरों में बहुत सारी गोलियों के निशान थे. उनके शरीर के चारों तरफ़ ख़ून ही ख़ून फैला हुआ था. उनका चश्मा सीढ़ियों पर पड़ा हुआ था."सिविल जाँच आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि 'ज़िया के स्टाफ़ ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट कर्नल महफ़ूज़ुर और उनके एडीसी कैप्टन मज़हर तब तक अपनी पहली मंज़िल के कमरों से बाहर नहीं निकले जब तक वायरलेस ऑपरेटर नायक अब्दुल बशर ने उनके दरवाज़े खटखटा कर उन्हें पुकारा नहीं. जब तक हमलावरों को गए हुए काफ़ी समय हो चुका था। ज़िया की मौत के बाद जारी श्वेत पत्र में कहा गया, "ज़िया के एडीसी कैप्टन मज़हर ज़िया के बगल वाले कमरे में थे. उन्होंने राष्ट्रपति तक पहुँचने की ख़ुद कोई कोशिश नहीं की. अलबत्ता उन्होंने उनसे फ़ोन पर संपर्क साधने की कोशिश की जिसमें उनको कामयाबी नहीं मिली। उनके काम पर टिप्पणी करते हुए सिविल जाँच आयोग ने कहा, "राष्ट्रपति और उनके एडीसी के कमरों को जोड़ता हुआ एक दरवाज़ा था. उनके लिए राष्ट्रपति के पास पहुँचना बहुत आसान था. जब हमलावर राष्ट्रपति के कमरे के दरवाज़े को पीट रहे थे, वो एडीसी के कमरे में जा कर बच सकते थे। एडीसी से उम्मीद की जाती थी कि ख़तरा देखते ही उन्हें उस दरवाज़े से राष्ट्रपति को अपने कमरे में आने के लिए कहना चाहिए था. हमें ये जानकर ताज्जुब हुआ कि एडीसी ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं था कि उनके और राष्ट्रपति के कमरे के बीच एक कनेक्टिंग दरवाज़ा था।
ज़मीन पर पड़ा रहा जनरल ज़िया का शव
राष्ट्रपति ज़िया का शव बहुत देर तक उसी स्थान पर पड़ा रहा जहाँ उन्हें मारा गया था। सर्किट हाउस पहुँचे हुए बीएनपी के नेताओं, चटगाँव के कमिश्नर, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और नौसेनाध्यक्ष किसी ने ये भी मुनासिब नहीं समझा कि जनरल ज़िया के शव को ज़मीन से उठा कर पलंग पर लिटा दिया जाए। सिर्फ़ एक बीएनपी नेता मिज़ानुर रहमान चौधरी अपने ख़ुद के बिस्तर से सफ़ेद चादर उठा कर लाए और उन्होंने उसे मृत राष्ट्रपति के पार्थिव शरीर के ऊपर डाल दिया। नौसेनाध्यक्ष एडमिरल महमूद आलम ख़ाँ जो ज़िया के विमान में ही ढाका से चटगाँव आए थे, साढ़े पाँच बजे सर्किट हाउस पहुँचे. उन्होंने पोर्च में ही कुछ अधिकारियों से बात की. कुछ लोगों के ज़ोर दिए जाने के बावजूद वो ज़िया के शव को देखने पहली मंज़िल पर नहीं गए। साढ़े सात बजे तक सभी बीएनपी नेता और वरिष्ठ अधिकारी सर्किट हाउस से जा चुके थे. ज़िया के शव की निगरानी के लिए सिर्फ़ दो जूनियर अधिकारियों को वहाँ छोड़ा गया था और उनका पार्थिव शरीर अब भी ज़मीन पर ही पड़ा हुआ था। चटगाँव के कमिश्नर सैफ़ुद्दीन अहमद ने एंटनी मैसक्रेनहस को बाद में दिए गए इंटरव्यू में बताया, "उसके बाद मैं लेफ़्टिनेंट कर्नल महफ़ूज़ुर और मेहताब और एडीसी कैप्टेन मशहूरुल हक़ को अपने घर नाश्ता कराने ले गया और मेरी पत्नी ने उन सब के लिए नाश्ता तैयार किया।
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